सूरज सर पे आ पहुँचा
गर्मी है या रोज़-ए-जज़ा
सारा दिन तपते सूरज की गर्मी में जलते रहे
ठंडी ठंडी हवा फिर चली सो रहो सो रहो
तू ने तारों से शब की माँग भरी
मुझ को इक अश्क-ए-सुब्ह-गाही दे
कुछ ख़बर ले कि तेरी महफ़िल से
दूर बैठा है जाँ-ब-लब कोई
उम्र भर की नवा-गरी का सिला
ऐ ख़ुदा कोई हम-नवा ही दे
नाब-ए-ख़ेमा-ए-गुल थाम ‘नासिर’
कोई आँधी उफ़ुक़ से आ रही है
पहाड़ों से चली फिर कोई आँधी
उड़े जाते हैं औराक़-ए-ख़िज़ानी