न मिला कर उदास लोगों से
हुस्न तेरा बिखर न जाए कहीं
गए दिनों का सुराग़ ले कर किधर से आया किधर गया वो
अजीब मानूस अजनबी था मुझे तो हैरान कर गया वो
वो दिल-नवाज़ है लेकिन नज़र-शनास नहीं
मिरा इलाज मिरे चारा-गर के पास नहीं
मैं तो बीते दिनों की खोज में हूँ
तू कहाँ तक चलेगा मेरे साथ
नींद आती नहीं तो सुबह तलक
गर्द-ए-महताब का सफ़र देखो
कल जो था वो आज नहीं जो आज है कल मिट जाएगा
रूखी-सूखी जो मिल जाए शुक्र करो तो बेहतर है
वो शहर में था तो उस के लिए औरों से भी मिलना पड़ता था
अब ऐसे-वैसे लोगों के मैं नाज़ उठाऊँ किस के लिए
उन्हें सदियों न भूलेगा ज़माना
यहाँ जो हादसे कल हो गए हैं
यूँ किस तरह कटेगा कड़ी धूप का सफ़र
सर पर ख़याल-ए-यार की चादर ही ले चलें
मैं सोते सोते कई बार चौंक चौंक पड़ा
तमाम रात तिरे पहलुओं से आँच आई