ख़ुदा दराज़ करे उम्र चर्ख़-ए-नीली की
ये बेकसों के मज़ारों का शामियाना है
ब’अद फ़रहाद के फिर कोह-कनी मैं ने की
ब’अद मजनूँ के किया मैं ने बयाबाँ आबाद
दिल की कुदूरतें अगर इंसाँ से दूर हों
सारे निफ़ाक़ गब्र ओ मुसलमाँ से दूर हों
उस बला-ए-जाँ से ‘आतिश’ देखिए क्यूँकर बने
दिल सिवा शीशे से नाज़ुक दिल से नाज़ुक ख़ू-ए-दोस्त
पा-ब-गिल बे-ख़ुदी-ए-शौक़ से मैं रहता था
कूचा-ए-यार में हालत मिरी दीवार की थी
तब्ल-ओ-अलम ही पास हैं अपने न मुल्क-ओ-माल
हम से ख़िलाफ़ हो के करेगा ज़माना क्या
लिबास-ए-काबा का हासिल किया शरफ़ उस ने
जो कू-ए-यार में काली कोई घटा आई
कौन से दिन हाथ में आया मिरे दामान-ए-यार
कब ज़मीन-ओ-आसमाँ का फ़ासला जाता रहा
वही पस्ती ओ बुलंदी है ज़मीं की आतिश
वही गर्दिश में शब ओ रोज़ हैं अफ़्लाक हनूज़
शहर में क़ाफ़िया-पैमाई बहुत की ‘आतिश’
अब इरादा है मिरा बादिया-पैमाई का