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हैदर अली आतिश के चुनिंदा शेर

कोई तो दोश से बार-ए-सफ़र उतारेगा
हज़ारों राहज़न उम्मीद-वार राह में है


कोई बुत-ख़ाने को जाता है कोई काबे को
फिर रहे गब्र ओ मुसलमाँ हैं तिरी घात में क्या


सख़्ती-ए-राह खींचिए मंज़िल के शौक़ में
आराम की तलाश में ईज़ा उठाइए


तिरे अबरू-ए-पेवस्ता का आलम में फ़साना है
किसी उस्ताद शायर का ये बैत-ए-आशिक़ाना है


मर्द-ए-दरवेश हूँ तकिया है तवक्कुल मेरा
ख़र्च हर रोज़ है याँ आमद-ए-बालाई का


ईद-ए-नौ-रोज़ दिल अपना भी कभी ख़ुश करते
यार आग़ोश में ख़ुर्शीद हमल में होता


आतिश-ए-मस्त जो मिल जाए तो पूछूँ उस से
तू ने कैफ़िय्यत उठाई है ख़राबात में क्या


गुल आते हैं हस्ती में अदम से हमा-तन-गोश
बुलबुल का ये नाला नहीं अफ़्साना है उस का


मैं वो ग़म-दोस्त हूँ जब कोई ताज़ा ग़म हुआ पैदा
न निकला एक भी मेरे सिवा उम्मीद-वारों में


मुझ से दरिया-नोश को साक़ी पिलाता है शराब
देखता हूँ मैं भी ज़र्फ़-ए-शीशा-ओ-पैमाना आज


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By: Khwaja Haidar Ali Aatish

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