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ताबाँ अब्दुल हई के चुनिंदा शेर

किस किस तरह की दिल में गुज़रती हैं हसरतें
है वस्ल से ज़ियादा मज़ा इंतिज़ार का


कई फ़ाक़ों में ईद आई है
आज तू हो तो जान हम-आग़ोश


दर्द-ए-सर है ख़ुमार से मुझ को
जल्द ले कर शराब आ साक़ी


मोहब्बत तू मत कर दिल उस बेवफ़ा से
दिल उस बेवफ़ा से मोहब्बत तू मत कर


जब तलक रहे जीता चाहिए हँसे बोले
आदमी को चुप रहना मौत की निशानी है


महफ़िल के बीच सुन के मिरे सोज़-ए-दिल का हाल
बे-इख़्तियार शम्अ के आँसू ढलक पड़े


आतिश-ए-इश्क़ में जो जल न मरें
इश्क़ के फ़न में वो अनारी हैं


ले मेरी ख़बर चश्म मिरे यार की क्यूँ-कर
बीमार अयादत करे बीमार की क्यूँ-कर


हवा भी इश्क़ की लगने न देता मैं उसे हरगिज़
अगर इस दिल पे होता हाए कुछ भी इख़्तियार अपना


तुम इस क़दर जो निडर हो के ज़ुल्म करते हो
बुताँ हमारा तुम्हारा कोई ख़ुदा भी है


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By: Taban Abdul Hai

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