loader image

ताबाँ अब्दुल हई के चुनिंदा शेर

तू मिल उस से हो जिस से दिल तिरा ख़ुश
बला से तेरी मैं ना-ख़ुश हूँ या ख़ुश


बुरा न मानियो मैं पूछता हूँ ऐ ज़ालिम
कि बे-कसों के सताए से कुछ भला भी है


तू भली बात से ही मेरी ख़फ़ा होता है
आह क्या चाहना ऐसा ही बुरा होता है


मलूँ हों ख़ाक जूँ आईना मुँह पर
तिरी सूरत मुझे आती है जब याद


देख क़ासिद को मिरे यार ने पूछा ‘ताबाँ’
क्या मिरे हिज्र में जीता है वो ग़मनाक हनूज़


कब पिलावेगा तू ऐ साक़ी मुझे जाम-ए-शराब
जाँ-ब-लब हूँ आरज़ू में मय की पैमाने की तरह


यार रूठा है मिरा उस को मनाऊँ किस तरह
मिन्नतें कर पाँव पड़ उस के ले आऊँ किस तरह


कर क़त्ल मुझे उन ने आलम में बहुत ढूँडा
जब मुझ सा न कुइ पाया जल्लाद बहुत रोया


हो रूह के तईं जिस्म से किस तरह मोहब्बत
ताइर को क़फ़स से भी कहीं हो है मोहब्बत


मैं हो के तिरे ग़म से नाशाद बहुत रोया
रातों के तईं कर के फ़रियाद बहुत रोया


953

Add Comment

By: Taban Abdul Hai

© 2023 पोथी | सर्वाधिकार सुरक्षित

Do not copy, Please support by sharing!