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अमीर मीनाई के चुनिंदा शेर

ख़ुश्क सेरों तन-ए-शाएर का लहू होता है
तब नज़र आती है इक मिस्रा-ए-तर की सूरत


नब्ज़-ए-बीमार जो ऐ रश्क-ए-मसीहा देखी
आज क्या आप ने जाती हुई दुनिया देखी


लाए कहाँ से उस रुख़-ए-रौशन की आब-ओ-ताब
बेजा नहीं जो शर्म से है आब आब शम्अ


तरफ़-ए-काबा न जा हज के लिए नादाँ है
ग़ौर कर देख कि है ख़ाना-ए-दिल मस्कन-ए-दोस्त


मिसी छूटी हुई सूखे हुए होंट
ये सूरत और आप आते हैं घर से


रोज़-ओ-शब याँ एक सी है रौशनी
दिल के दाग़ों का चराग़ाँ और है


हो गया बंद दर-ए-मै-कदा क्या क़हर हुआ
शौक़-ए-पा-बोस-ए-हसीनाँ जो तुझे था ऐ दिल


‘अमीर’ जाते हो बुत-ख़ाने की ज़ियारत को
पड़ेगा राह में का’बा सलाम कर लेना


चार झोंके जब चले ठंडे चमन याद आ गया
सर्द आहें जब किसी ने लीं वतन याद आ गया


जब कहीं दो गज़ ज़मीं देखी ख़ुदी समझा मैं गोर
जब नई दो चादरें देखीं कफ़न याद आ गया


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By: Ameer Minai

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