ख़ुश्क सेरों तन-ए-शाएर का लहू होता है
तब नज़र आती है इक मिस्रा-ए-तर की सूरत
नब्ज़-ए-बीमार जो ऐ रश्क-ए-मसीहा देखी
आज क्या आप ने जाती हुई दुनिया देखी
लाए कहाँ से उस रुख़-ए-रौशन की आब-ओ-ताब
बेजा नहीं जो शर्म से है आब आब शम्अ
तरफ़-ए-काबा न जा हज के लिए नादाँ है
ग़ौर कर देख कि है ख़ाना-ए-दिल मस्कन-ए-दोस्त
मिसी छूटी हुई सूखे हुए होंट
ये सूरत और आप आते हैं घर से
रोज़-ओ-शब याँ एक सी है रौशनी
दिल के दाग़ों का चराग़ाँ और है
हो गया बंद दर-ए-मै-कदा क्या क़हर हुआ
शौक़-ए-पा-बोस-ए-हसीनाँ जो तुझे था ऐ दिल
‘अमीर’ जाते हो बुत-ख़ाने की ज़ियारत को
पड़ेगा राह में का’बा सलाम कर लेना
चार झोंके जब चले ठंडे चमन याद आ गया
सर्द आहें जब किसी ने लीं वतन याद आ गया
जब कहीं दो गज़ ज़मीं देखी ख़ुदी समझा मैं गोर
जब नई दो चादरें देखीं कफ़न याद आ गया