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अमीर मीनाई के चुनिंदा शेर

हँस के फ़रमाते हैं वो देख के हालत मेरी
क्यूँ तुम आसान समझते थे मोहब्बत मेरी


माँग लूँ तुझ से तुझी को कि सभी कुछ मिल जाए
सौ सवालों से यही एक सवाल अच्छा है


अभी आए अभी जाते हो जल्दी क्या है दम ले लो
न छेड़ूँगा मैं जैसी चाहे तुम मुझ से क़सम ले लो


किसी रईस की महफ़िल का ज़िक्र ही क्या है
ख़ुदा के घर भी न जाएँगे बिन बुलाए हुए


आँखें दिखलाते हो जोबन तो दिखाओ साहब
वो अलग बाँध के रक्खा है जो माल अच्छा है


फ़िराक़-ए-यार ने बेचैन मुझ को रात भर रक्खा
कभी तकिया इधर रक्खा कभी तकिया उधर रक्खा


‘अमीर’ अब हिचकियाँ आने लगी हैं
कहीं मैं याद फ़रमाया गया हूँ


जो चाहिए सो माँगिये अल्लाह से ‘अमीर’
उस दर पे आबरू नहीं जाती सवाल से


हटाओ आइना उम्मीद-वार हम भी हैं
तुम्हारे देखने वालों में यार हम भी हैं


जवाँ होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दा
हया यक-लख़्त आई और शबाब आहिस्ता आहिस्ता


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By: Ameer Minai

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