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मिर्ज़ा ग़ालिब के चुनिंदा शेर

उम्र भर देखा किए मरने की राह
मर गए पर देखिए दिखलाएँ क्या


देखिए लाती है उस शोख़ की नख़वत क्या रंग
उस की हर बात पे हम नाम-ए-ख़ुदा कहते हैं


काम उस से आ पड़ा है कि जिस का जहान में
लेवे न कोई नाम सितम-गर कहे बग़ैर


गर तुझ को है यक़ीन-ए-इजाबत दुआ न माँग
यानी बग़ैर-ए-यक-दिल-ए-बे-मुद्दआ न माँग


सौ बार बंद-ए-इश्क़ से आज़ाद हम हुए
पर क्या करें कि दिल ही अदू है फ़राग़ का


लाज़िम था कि देखो मिरा रस्ता कोई दिन और
तन्हा गए क्यूँ अब रहो तन्हा कोई दिन और


मुझ तक कब उन की बज़्म में आता था दौर-ए-जाम
साक़ी ने कुछ मिला न दिया हो शराब में


पकड़े जाते हैं फ़रिश्तों के लिखे पर ना-हक़
आदमी कोई हमारा दम-ए-तहरीर भी था


दिल में ज़ौक़-ए-वस्ल ओ याद-ए-यार तक बाक़ी नहीं
आग इस घर में लगी ऐसी कि जो था जल गया


दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग
देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक


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By: Mirza Ghalib

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