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बशीर बद्र के चुनिंदा शेर

कई सितारों को मैं जानता हूँ बचपन से
कहीं भी जाऊँ मिरे साथ साथ चलते हैं


नाम पानी पे लिखने से क्या फ़ाएदा
लिखते लिखते तिरे हाथ थक जाएँगे


ख़ुदा की उस के गले में अजीब क़ुदरत है
वो बोलता है तो इक रौशनी सी होती है


बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगे
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा


फिर से ख़ुदा बनाएगा कोई नया जहाँ
दुनिया को यूँ मिटाएगी इक्कीसवीं सदी


ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं
तुम ने मिरा काँटों भरा बिस्तर नहीं देखा


मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मोहब्बतों की कहानियाँ
जो कहा नहीं वो सुना करो जो सुना नहीं वो कहा करो


इजाज़त हो तो मैं इक झूट बोलूँ
मुझे दुनिया से नफ़रत हो गई है


मैं जिस की आँख का आँसू था उस ने क़द्र न की
बिखर गया हूँ तो अब रेत से उठाए मुझे


नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही
ये खिड़की खोलो ज़रा सुब्ह की हवा ही लगे


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By: Bashir Badr

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