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बशीर बद्र के चुनिंदा शेर

ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे


मैं तमाम दिन का थका हुआ तू तमाम शब का जगा हुआ
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ


ये एक पेड़ है आ इस से मिल के रो लें हम
यहाँ से तेरे मिरे रास्ते बदलते हैं


अजीब रात थी कल तुम भी आ के लौट गए
जब आ गए थे तो पल भर ठहर गए होते


मुख़ालिफ़त से मिरी शख़्सियत सँवरती है
मैं दुश्मनों का बड़ा एहतिराम करता हूँ


सब लोग अपने अपने ख़ुदाओं को लाए थे
इक हम ही ऐसे थे कि हमारा ख़ुदा न था


नए दौर के नए ख़्वाब हैं नए मौसमों के गुलाब हैं
ये मोहब्बतों के चराग़ हैं इन्हें नफ़रतों की हवा न दे


रात का इंतिज़ार कौन करे
आज कल दिन में क्या नहीं होता


हम दिल्ली भी हो आए हैं लाहौर भी घूमे
ऐ यार मगर तेरी गली तेरी गली है


इस शहर के बादल तिरी ज़ुल्फ़ों की तरह हैं
ये आग लगाते हैं बुझाने नहीं आते


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By: Bashir Badr

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