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बशीर बद्र के चुनिंदा शेर

दादा बड़े भोले थे सब से यही कहते थे
कुछ ज़हर भी होता है अंग्रेज़ी दवाओं में


उसे पाक नज़रों से चूमना भी इबादतों में शुमार है
कोई फूल लाख क़रीब हो कभी मैं ने उस को छुआ नहीं


गले में उस के ख़ुदा की अजीब बरकत है
वो बोलता है तो इक रौशनी सी होती है


न जाने कब तिरे दिल पर नई सी दस्तक हो
मकान ख़ाली हुआ है तो कोई आएगा


हम ने तो बाज़ार में दुनिया बेची और ख़रीदी है
हम को क्या मालूम किसी को कैसे चाहा जाता है


बिछी थीं हर तरफ़ आँखें ही आँखें
कोई आँसू गिरा था याद होगा


हँसो आज इतना कि इस शोर में
सदा सिसकियों की सुनाई न दे


मिरे साथ चलने वाले तुझे क्या मिला सफ़र में
वही दुख-भरी ज़मीं है वही ग़म का आसमाँ है


वो इंतिज़ार की चौखट पे सो गया होगा
किसी से वक़्त तो पूछें कि क्या बजा होगा


मुझे लगता है दिल खिंच कर चला आता है हाथों पर
तुझे लिक्खूँ तो मेरी उँगलियाँ ऐसी धड़कती हैं


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By: Bashir Badr

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