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बशीर बद्र के चुनिंदा शेर

गुफ़्तुगू उन से रोज़ होती है
मुद्दतों सामना नहीं होता


है अजीब शहर की ज़िंदगी न सफ़र रहा न क़याम है
कहीं कारोबार सी दोपहर कहीं बद-मिज़ाज सी शाम है


कभी कभी तो छलक पड़ती हैं यूँही आँखें
उदास होने का कोई सबब नहीं होता


न तुम होश में हो न हम होश में हैं
चलो मय-कदे में वहीं बात होगी


बहुत दिनों से मिरे साथ थी मगर कल शाम
मुझे पता चला वो कितनी ख़ूबसूरत है


जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता


एक औरत से वफ़ा करने का ये तोहफ़ा मिला
जाने कितनी औरतों की बद-दुआएँ साथ हैं


कभी तो आसमाँ से चाँद उतरे जाम हो जाए
तुम्हारे नाम की इक ख़ूब-सूरत शाम हो जाए


महक रही है ज़मीं चाँदनी के फूलों से
ख़ुदा किसी की मोहब्बत पे मुस्कुराया है


दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है
जो भी गुज़रा है उस ने लूटा है


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By: Bashir Badr

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