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बशीर बद्र के चुनिंदा शेर

मुद्दत से इक लड़की के रुख़्सार की धूप नहीं आई
इस लिए मेरे कमरे में इतनी ठंडक रहती है


हक़ीक़तों में ज़माना बहुत गुज़ार चुके
कोई कहानी सुनाओ बड़ा अँधेरा है


प्यार ही प्यार है सब लोग बराबर हैं यहाँ
मय-कदे में कोई छोटा न बड़ा जाम उठा


तुम्हारे घर के सभी रास्तों को काट गई
हमारे हाथ में कोई लकीर ऐसी थी


मंदिर गए मस्जिद गए पीरों फ़क़ीरों से मिले
इक उस को पाने के लिए क्या क्या किया क्या क्या हुआ


इक शाम के साए तले बैठे रहे वो देर तक
आँखों से की बातें बहुत मुँह से कहा कुछ भी नहीं


मेरी आँख के तारे अब न देख पाओगे
रात के मुसाफ़िर थे खो गए उजालों में


हाथ में चाँद जहाँ आया मुक़द्दर चमका
सब बदल जाएगा क़िस्मत का लिखा जाम उठा


यहाँ एक बच्चे के ख़ून से जो लिखा हुआ है उसे पढ़ें
तिरा कीर्तन अभी पाप है अभी मेरा सज्दा हराम है


ये परिंदे भी खेतों के मज़दूर हैं
लौट के अपने घर शाम तक जाएँगे


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By: Bashir Badr

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