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जिगर मुरादाबादी के चुनिंदा शेर

दर्द ओ ग़म दिल की तबीअत बन गए
अब यहाँ आराम ही आराम है


मौत क्या एक लफ़्ज़-ए-बे-मअ’नी
जिस को मारा हयात ने मारा


हम इश्क़ के मारों का इतना ही फ़साना है
रोने को नहीं कोई हँसने को ज़माना है


हाए रे मजबूरियाँ महरूमियाँ नाकामियाँ
इश्क़ आख़िर इश्क़ है तुम क्या करो हम क्या करें


आदमी के पास सब कुछ है मगर
एक तन्हा आदमिय्यत ही नहीं


कुछ खटकता तो है पहलू में मिरे रह रह कर
अब ख़ुदा जाने तिरी याद है या दिल मेरा


सब को मारा ‘जिगर’ के शेरों ने
और ‘जिगर’ को शराब ने मारा


इधर से भी है सिवा कुछ उधर की मजबूरी
कि हम ने आह तो की उन से आह भी न हुई


गुनाहगार के दिल से न बच के चल ज़ाहिद
यहीं कहीं तिरी जन्नत भी पाई जाती है


मोहब्बत में ये क्या मक़ाम आ रहे हैं
कि मंज़िल पे हैं और चले जा रहे हैं


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By: Jigar Moradabadi

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