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जिगर मुरादाबादी के चुनिंदा शेर

इस तरह ख़ुश हूँ किसी के वादा-ए-फ़र्दा पे मैं
दर-हक़ीक़त जैसे मुझ को ए’तिबार आ ही गया


मुझ को नहीं क़ुबूल दो-आलम की वुसअतें
क़िस्मत में कू-ए-यार की दो-गज़ ज़मीं रहे


ऐसा कहाँ बहार में रंगीनियों का जोश
शामिल किसी का ख़ून-ए-तमन्ना ज़रूर था


बराबर से बच कर गुज़र जाने वाले
ये नाले नहीं बे-असर जाने वाले


बिगड़ा हुआ है रंग जहान-ए-ख़राब का
भर लूँ नज़र में हुस्न किसी के शबाब का


हुस्न के हर जमाल में पिन्हाँ
मेरी रानाई-ए-ख़याल भी है


तूफ़ाँ का गिला क्या करता है तूफ़ाँ को दुआएँ दे नादाँ
हर मौज तुझे ठोकर दे कर साहिल की तरफ़ ले जाती है


हुस्न को क्या दुश्मनी है इश्क़ को क्या बैर है
अपने ही क़दमों की ख़ुद ही ठोकरें खाता हूँ मैं


आँखों से जान जाइए फ़ुर्क़त का माजरा
अश्कों से पूछ लीजिए जो दिल का हाल है


हाए-री मजबूरियाँ तर्क-ए-मोहब्बत के लिए
मुझ को समझाते हैं वो और उन को समझाता हूँ मैं

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By: Jigar Moradabadi

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