कुछ इस अदा से आज वो पहलू-नशीं रहे
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे
हमें मालूम है हम से सुनो महशर में क्या होगा
सब उस को देखते होंगे वो हम को देखता होगा
मोहब्बत में इक ऐसा वक़्त भी दिल पर गुज़रता है
कि आँसू ख़ुश्क हो जाते हैं तुग़्यानी नहीं जाती
तुझे भूल जाना तो मुमकिन नहीं है
मगर भूल जाने को जी चाहता है
आज न जाने राज़ ये क्या है
हिज्र की रात और इतनी रौशन
आँखों में नमी सी है चुप चुप से वो बैठे हैं
नाज़ुक सी निगाहों में नाज़ुक सा फ़साना है
मोहब्बत में हम तो जिए हैं जिएँगे
वो होंगे कोई और मर जाने वाले
मसर्रत ज़िंदगी का दूसरा नाम
मसर्रत की तमन्ना मुस्तक़िल ग़म
तिरी ख़ुशी से अगर ग़म में भी ख़ुशी न हुई
वो ज़िंदगी तो मोहब्बत की ज़िंदगी न हुई
धड़कने लगा दिल नज़र झुक गई
कभी उन से जब सामना हो गया