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मीर तक़ी मीर के चुनिंदा शेर

मुँह तका ही करे है जिस तिस का
हैरती है ये आईना किस का


शेर मेरे हैं गो ख़वास-पसंद
पर मुझे गुफ़्तुगू अवाम से है


सरसरी तुम जहान से गुज़रे
वर्ना हर जा जहान-ए-दीगर था


दिल से शौक़-ए-रुख़-ए-निकू न गया
झाँकना-ताकना कभू न गया


कितनी बातें बना के लाऊँ लेक
याद रहतीं तिरे हुज़ूर नहीं


हम फ़क़ीरों से बे-अदाई क्या
आन बैठे जो तुम ने प्यार किया


आह-ए-सहर ने सोज़िश-ए-दिल को मिटा दिया
इस बाद ने हमें तो दिया सा बुझा दिया


कौन लेता था नाम मजनूँ का
जब कि अहद-ए-जुनूँ हमारा था


हम तौर-ए-इश्क़ से तो वाक़िफ़ नहीं हैं लेकिन
सीने में जैसे कोई दिल को मला करे है


ज़िंदाँ में भी शोरिश न गई अपने जुनूँ की
अब संग मुदावा है इस आशुफ़्ता-सरी का


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By: Mir Taqi Mir

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