मुँह तका ही करे है जिस तिस का
हैरती है ये आईना किस का
शेर मेरे हैं गो ख़वास-पसंद
पर मुझे गुफ़्तुगू अवाम से है
सरसरी तुम जहान से गुज़रे
वर्ना हर जा जहान-ए-दीगर था
दिल से शौक़-ए-रुख़-ए-निकू न गया
झाँकना-ताकना कभू न गया
कितनी बातें बना के लाऊँ लेक
याद रहतीं तिरे हुज़ूर नहीं
हम फ़क़ीरों से बे-अदाई क्या
आन बैठे जो तुम ने प्यार किया
आह-ए-सहर ने सोज़िश-ए-दिल को मिटा दिया
इस बाद ने हमें तो दिया सा बुझा दिया
कौन लेता था नाम मजनूँ का
जब कि अहद-ए-जुनूँ हमारा था
हम तौर-ए-इश्क़ से तो वाक़िफ़ नहीं हैं लेकिन
सीने में जैसे कोई दिल को मला करे है
ज़िंदाँ में भी शोरिश न गई अपने जुनूँ की
अब संग मुदावा है इस आशुफ़्ता-सरी का