मीर क्या सादे हैं बीमार हुए जिस के सबब
उसी अत्तार के लड़के से दवा लेते हैं
तदबीर मेरे इश्क़ की क्या फ़ाएदा तबीब
अब जान ही के साथ ये आज़ार जाएगा
परस्तिश की याँ तक कि ऐ बुत तुझे
नज़र में सभों की ख़ुदा कर चले
आशिक़ों की ख़स्तगी बद-हाली की पर्वा नहीं
ऐ सरापा नाज़ तू ने बे-नियाज़ी ख़ूब की
लगा न दिल को कहीं क्या सुना नहीं तू ने
जो कुछ कि ‘मीर’ का इस आशिक़ी ने हाल किया
हम आप ही को अपना मक़्सूद जानते हैं
अपने सिवाए किस को मौजूद जानते हैं
दीदनी है शिकस्तगी दिल की
क्या इमारत ग़मों ने ढाई है
मर्ग इक माँदगी का वक़्फ़ा है
यानी आगे चलेंगे दम ले कर
जो इस शोर से ‘मीर’ रोता रहेगा
तो हम-साया काहे को सोता रहेगा
इश्क़ से जा नहीं कोई ख़ाली
दिल से ले अर्श तक भरा है इश्क़