ज़ेर-ए-शमशीर-ए-सितम ‘मीर’ तड़पना कैसा
सर भी तस्लीम-ए-मोहब्बत में हिलाया न गया
जब हम-कलाम हम से होता है पान खा कर
किस रंग से करे है बातें चबा चबा कर
हाँ ख़ुदा मग़्फ़िरत करे उस को
सब्र मरहूम था अजब कोई
इस दश्त में ऐ सैल सँभल ही के क़दम रख
हर सम्त को याँ दफ़्न मरी तिश्ना-लबी है