हुआ है चार सज्दों पर ये दावा ज़ाहिदो तुम को
ख़ुदा ने क्या तुम्हारे हाथ जन्नत बेच डाली है
दिल ही तो है न आए क्यूँ दम ही तो है न जाए क्यूँ
हम को ख़ुदा जो सब्र दे तुझ सा हसीं बनाए क्यूँ
सर मिरा काट के पछ्ताइएगा
झूटी फिर किस की क़सम खाइएगा
ख़ार-ए-हसरत बयान से निकला
दिल का काँटा ज़बान से निकला
तदबीर से क़िस्मत की बुराई नहीं जाती
बिगड़ी हुई तक़दीर बनाई नहीं जाती
हज़रत-ए-दिल आप हैं किस ध्यान में
मर गए लाखों इसी अरमान में
शोख़ी से ठहरती नहीं क़ातिल की नज़र आज
ये बर्क़-ए-बला देखिए गिरती है किधर आज
इफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़ में गो ज़िल्लतें हुईं
लेकिन उसे जता तो दिया जान तो गया
किसी तरह जो न उस बुत ने ए’तिबार किया
मिरी वफ़ा ने मुझे ख़ूब शर्मसार किया
उधर शर्म हाइल इधर ख़ौफ़ माने
न वो देखते हैं न हम देखते हैं