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दाग़ देहलवी के चुनिंदा शेर

हुआ है चार सज्दों पर ये दावा ज़ाहिदो तुम को
ख़ुदा ने क्या तुम्हारे हाथ जन्नत बेच डाली है


दिल ही तो है न आए क्यूँ दम ही तो है न जाए क्यूँ
हम को ख़ुदा जो सब्र दे तुझ सा हसीं बनाए क्यूँ


सर मिरा काट के पछ्ताइएगा
झूटी फिर किस की क़सम खाइएगा


ख़ार-ए-हसरत बयान से निकला
दिल का काँटा ज़बान से निकला


तदबीर से क़िस्मत की बुराई नहीं जाती
बिगड़ी हुई तक़दीर बनाई नहीं जाती


हज़रत-ए-दिल आप हैं किस ध्यान में
मर गए लाखों इसी अरमान में


शोख़ी से ठहरती नहीं क़ातिल की नज़र आज
ये बर्क़-ए-बला देखिए गिरती है किधर आज


इफ़्शा-ए-राज़-ए-इश्क़ में गो ज़िल्लतें हुईं
लेकिन उसे जता तो दिया जान तो गया


किसी तरह जो न उस बुत ने ए’तिबार किया
मिरी वफ़ा ने मुझे ख़ूब शर्मसार किया


उधर शर्म हाइल इधर ख़ौफ़ माने
न वो देखते हैं न हम देखते हैं


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By: Dagh Dehlvi

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